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जय जगन्नाथ, जय जगन्नाथ के जयकारों से गुंजायमान हुआ शहर

रथ की रस्सी को तो थामेंगे हमारे ये दोनों हाथ, हमारे जीवन की रस्सी को थामें भगवान जगन्नाथ

जय जगन्नाथ, जय जगन्नाथ के जयकारों से गुंजायमान हुआ शहर

The city echoed with the chants of Jai Jagannath, Jai Jagannath.

ललितपुर (सम्भव सिंघई) बत्तीस वर्ष पूर्व मोर मोटर से शुरु हुई भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा आज पुरी की तर्ज पर भव्यता में तब्दील हो गई।दस वर्ष पूर्व भगवान की रथ यात्रा के लिए लकड़ी के तीन आकर्षक रथों का निर्माण कराया गया था जो आज रथयात्रा को भव्यता प्रदान करते है। शहर की आस्था का केंद्र बन चुकी रथयात्रा को सफल बनाने के लिए समिति के साथ हर आम ओ खाश तैयारियों में जुटा रहता है। जगन्नाथपुरी में सोने की झाड़ू से जगन्नाथ रथयात्रा के मार्ग की सफाई की जाती है। इसी तर्ज पर मंदिर समिति द्वारा रथयात्रा के दौरान चांदी की झाड़ू से सफाई की जाती है। इस रथयात्रा की विशेष बात यह है कि भगवान जगदीश मंदिर समिति ट्रस्ट की आय से ही मंदिर की देखरेख और भगवान जगन्नाथ रथयात्रा पर व्यय करती है। रथयात्रा के लिए किसी से भी किसी प्रकार का दान नहीं लिया जाता है।
नगर में स्थानीय घंटाघर के पास श्री जगदीश मंदिर की स्थापना संवत 1801 में हुंडैत परिवार द्वारा की गई थी। कहा जाता है कि उस समय शहर में गिने चुने मंदिर होने के कारण भगवान राम-जानकी के दर्शन के लिए हुंडैत परिवार एक मंदिर में जाया करते थे। एक बार जब इस परिवार की जिया नाम की महिला सदस्य भगवान रामजानकी के दर्शनों को मंदिर पहुंचीं, जहां पहुंचने में उन्हें कुछ देर हो गई, तो उस समय मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए और उन्हें भगवान के दर्शन किए बिना ही लौटना पड़ा, इस पर उन्होंने वहीं प्रण ले लिया कि जब तक वह इससे भी डेढ़ गुना बड़ा मंदिर नहीं बनवा लेती तब तक वह अन्न ग्रहण नहीं करेंगी। उसी समय उनके परिवार में घर बनाने का काम भी चल रहा था। परिवार के सदस्यों को यह बात पता चलने पर मकान बनाने की सामग्री और कारीगरों को उसी समय मंदिर निर्माण में लगा दिया गया। तब कहीं जाकर जिया ने प्रतिज्ञा पूरी होने पर अन्न ग्रहण किया और आज यही भगवान जगन्नाथ जी का मंदिर नगर का मुख्य आस्था का केंद्र बन चुका है। तीन मार्च 1949 को जगदीश मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की गई। कुछ समय तक मंदिर की देखरेख स्व.रामचरन हुंडैत, परमेश्वरी हुंडैत व उमानंद हुंडैत द्वारा की जाती रही। ट्रस्ट बनने में अध्यक्ष गोविंददास हुंडैत और मंत्री रामविलास हुंडैत रहे। चंद्रविनोद हुंडैत ट्रस्ट की आय से ही मंदिर के जीर्णोद्धार से लेकर तमाम व्यवस्थाएं देखते थे। 19 नबंवर वर्ष 1986 में कांचीकोटि पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वतीजी महाराज द्वारा मंदिर के मुख्य द्वार का शिलान्यास और रामविलास हुंडैत द्वारा भूमि पूजन किया गया था। इसके बाद 14 जुलाई वर्ष 1992 को पहली बार जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत की गई। इसके बाद यह मंदिर की परंपरा में शामिल हो गई, जो आज भी लगातार जारी है। पहली बार रथयात्रा के लिए तीन मोर मोटर में भगवान को विराजमान कर नगर में शोभायात्रा निकली। मंदिर के साथ ही रथयात्रा की भव्यता भी लगातार बढ़ती गई। इसके चलते आज यह रथयात्रा हुंडैत परिवार से सामाजिक स्वरुप में परिवर्तित हो गई। इसके चलते मंदिर समिति से हटकर रथयात्रा समिति में परिवार से अलग भी कई लोगों को पदाधिकारी बनाया गया। जिसमें शहर के रामेश्वर सड़ैया अध्यक्ष और रामगोपाल नामदेव मंत्री रहे।

भक्त को भगवान से जोड़ती है जगन्नाथ रथयात्रा

भाजपा प्रांतीय कार्यकारिणी सदस्य धमेन्द्र गोस्वामी का कहना है कि मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथजी का रथ खींचने से व्यक्ति अपने दुर्भाग्य को दूरकर सौभाग्य का सृजन करता है। भगवान की रथयात्रा में शामिल होने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।यहां रथों को खींचते समय एक खास बात यह देखी जाती है कि भगवान के रथों को घोड़ों द्वारा नहीं, वरन भगवान के असंख्य भक्तजनों द्वारा खींचा जाता है।

रथयात्रा की खुशी में भगवान इंद्र करतें हैं वर्षा

पूर्व भाजपा नगर अध्यक्ष अरविन्द्र ‌सिघई कहते है कि रथ यात्रा की शुरूआत से ही देखा गया है कि रथयात्रा निकलते समय बरसात जरूर होती है चाहे वह फुहार के रूप मे ही क्यो ना हो और इसके वह प्रत्यक्ष गवाह ‌है।

सौ जन्मों का पाप नष्ट करता है भगवान नाम का संकीर्तन

जगन्नाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष सुधाशु हुंडैत कहते है कि भगवान नाम का संकीर्तन करने मात्र से सौ जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है। रथ में स्थित पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्राजी का दर्शन करके मनुष्य अपने करोड़ों जन्मों के पापों का नाश कर लेता है। रथ मार्ग में जो भक्त भगवान को साष्टाङ्ग प्रणाम करते हैं वे अनादिकाल से अपने ऊपर चढ़े हुए पाप कृत कर्मों को त्यागकर मुक्त हो जाते हैं। जो भक्त रथ यात्रा के दौरान नृत्य कर भगवान का गीत गाते हैं, वे अपनी पीड़ाओं को वहीं छोड़कर अपने जीवन के सुख में वृद्धि करते हैं। जो भगवान के सहस्रनामों का पाठ करते हुए रथ की प्रदक्षिणा करते हैं, वे भगवान विष्णु के समान होकर वैकुंठ धाम में निवास करते हैं। जो मनुष्य रथ यात्रा अथवा भगवान के कार्य के लिए दान करता है, उसका थोड़ा भी दान अक्षय फल के समान माना गया है।

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