प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि सूफी संत के पाकिस्तानी नागरिक होने के नाते उनकी अस्थियों को लाने की मांग करने का संवैधानिक रूप से अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सूफी संत हजरत शाह मुहम्मद अब्दुल मुक्तादिर शाह मसूद अहमद की अस्थियों को बांग्लादेश से भारत लाने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी। दरअसल, कोर्ट का मानना है कि सूफी संत पाकिस्तानी नागरिक हैं, इसलिए उनकी अस्थियों को देश में लाने की मांग करने का अधिकार नहीं है।
संवैधानिक रूप से अधिकार नहीं
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि सूफी संत के पाकिस्तानी नागरिक होने के नाते उनकी अस्थियों को लाने की मांग करने का संवैधानिक रूप से अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा, ‘वह पाकिस्तान के नागरिक हैं। ऐसे में आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि भारत उनकी अस्थियों को देश में दफनाएगा?’
याचिकाकर्ता की दलील
सुप्रीम कोर्ट में दरगाह हजरत मुल्ला सैयद ने याचिका दायर की थी। उनके वकील ने शीर्ष अदालत से कहा कि संत का पाकिस्तान में कोई परिवार नहीं है, जबकि उत्तर प्रदेश में दरगाह पर वह सज्जादा-नशीन (आध्यात्मिक प्रमुख) थे। साथ ही यह भी बताया कि संत का जन्म इलाहाबाद, जिसका नाम अब प्रयागराज है, में हुआ था। उसके बाद वह पाकिस्तान चले गए थे। सन् 1992 में उन्हें पाकिस्तान की नागरिकता मिली थी।
प्रयागराज में दरगाह हजरत मुल्ला सैयद मोहम्मद शाह के सज्जादा नशीन के रूप में उन्हें साल 2008 में चुना गया था। उन्होंने 2021 में मंदिर में दफनाए जाने की इच्छा व्यक्त कर अपनी वसीयत की थी। ढाका में उनकी मृत्यु हो गई, जहां उन्हें दफनाया गया था।
अदालत ने यह कहा
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा वाली पीठ ने कहा, ‘हजरत शाह एक पाकिस्तानी नागरिक हैं। इसलिए उनका कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। वहीं सिद्धांत के तौर पर यह अदालत सही नहीं है कि वह किसी विदेशी राज्य के नागरिक की अस्थियों को भारत ले आने का निर्देश दे।’